महाकाली चालीसा Maha Kali Chalisa Hindi Language Lyrics by hindu devotional blog. Maha Kali Chalisa is the prayer addressed to Goddess Kali maa.
महाकाली चालीसा
जयति महाकाली जयति,
आद्य काली मात।
जै कराल वदने जयति,
जगत मातु विख्यात ॥
आद्य काली मात।
जै कराल वदने जयति,
जगत मातु विख्यात ॥
महाकालिका देवि।
जयति जयति
शिव-चन्द्रिका,
सुर नर मुनिजन सेवि॥
जयति जयति रक्तासना,
रौद्रमुखी रुद्राणी।
अरि शोणित खप्पर
भरणी,
खड़ग धारिणी शुचि
पाणि॥
जै जै जै मैया श्री काली।
जयति खड़ग कर खप्पर
वाली॥१॥
जयति महामाया
विकराला।
रुद्र-शक्ति कालहुँ
को काला॥२॥
माँ मधु कैटभ के वध हेतु।
प्रगटी श्री हरि के
तन से तू॥३॥
श्यामल गात मात तव
सोहत ।
रवि सम छवि लखि
छविपति मोहत॥४॥
दश मुख तीस नेत्र मन भावन।
भाल बाल शशि मुकुट सुहावन॥५॥
को छवि वरणि सकै माँ
तेरी।
श्याम केश जनु घटा
सुघेरी॥६॥
उर अरि मुण्डमाल छवि छाजत।
अस्त्र शस्त्र दश
हस्त विराजत॥७॥
खप्पर खड़ग त्रिशूल कुठारी।
गदा चक्र धनु शंख
सुधारी॥८॥
अरि कर कटन घाँघरा राजै।
अंग-अंग शुचि भूषण
साजै॥९॥
रंजित रक्त दस चरण
कराला।
जिहि विशाल रूप
विकराला॥१०॥
जबहिं अट्टहास माँ करती।
काँपत थर-थर थर-थर
धरती॥११॥
आदि शक्ति धनि जग
धात्री।
महा प्रलय की
अधिष्ठात्री॥१२॥
माँ तव चरण प्रगट श्री शंकर।
रसना बाहर वदन भयंकर॥१३॥
धनि-धनि कलकत्ते की
काली।
सहसभुजी श्री शिवपुर
वाली॥१४॥
तूही काली सिय दशमुख नाश्यो।
श्री रघुपति पद विजय
विलास्यो॥१५॥
जग सुख शांति हेतु
कल्याणा।
करी रूप धारण विधि
नाना॥१६॥
तू ही श्री कृष्ण रूप की काली।
चन्द्रहास मुरली कर
वाली॥१७॥
चतुर्भुजी तनु
अष्टभुजी धारी।
कहुँ दशभुज
अष्टादशकरी॥१८॥
कहुँ बत्तीस चौसठ भुज धारत।
कहुँ सहस्त्र भुज
करि अरि मारत॥१९॥
तू हरि शक्ति अर्द्ध
निशि वाली।
तीक्ष्णदन्त रसना
रिसि वाली॥२०॥
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रक्तचण्डिका खड़ग धारिणी।
रुद्र चन्द्रिका खल
संहारिणी॥२१॥
श्री शतश्रृंगी आद्य
काली।
काली खोह निवासिनी
वाली॥२२॥
आदि मातु तूही नर शिरमाली।
तुम्हीं कंस हननी
वैताली॥२३॥
तुम्ही भद्रकाली
कैलाशी।
सदा खलन के रक्त की
प्यासी॥२४॥
खच-खच-खच शिर कटि शत्रु कर।
भर-भर-भर शोणित
खप्पर भर॥२५॥
दल-दल-दल दानव भक्षण
कर।
छल-छल छल-छल रक्त
खलन कर॥२६॥
गनि-गनि-गनि अरि करहु निपाता।
धनि-धनि-धनि श्री
काली माता॥२७॥
यहि अरदास दास कहँ
माई।
पूरहु आस तु होउ
सहाई॥२८॥
पर्यो गाढ़ संकट अब भारी।
केहि का मैया आज
पुकारी॥२९॥
चारि चोर लाग्यो मग
मोही।
करन चहत रघुपति को
द्रोही॥३०॥
है येही शत्रुन का भूपा।
काम क्रोध मोह लोभ
सरूपा॥३१॥
इन्हीं देहुँ यदि
अन्त पछारी।
तबहिं मिलहिं भगवन्त
मुरारी॥३२॥
दूजो एक अर्ज यह माता।
तोड़हु सपदि खलन के
ताँता॥३३॥
जेते दुष्ट महा
अपराधी।
बदकर्मी पामर बक
व्याधी॥३४॥
जो नित बिनु अपराध सतावत।
धर्म कर्म शुभ हो न
पावत॥३५॥
तिन्हीं मातु तू चकि
जा हाली।
बचन पुत्र की होय न
खाली॥३६॥
पुनि बनि ऐन्द्री आवहु माता ।
अद्भुत शक्ति
दिखावहु माता ॥३७॥
झटपट लेहु खलहिं
संहारी।
मोरि मातु जनि करहु
अबारी॥३८॥
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भरहु शान्ति सुख धन जन धामा।
अति आनन्द होई यह
ग्रामा ॥३९॥
पुनि पुनि विनवहि
सुन्दरदासा।
मैया पूर करहु
अभिलाषा॥४०॥
दोहा
महाकालिका चरित यह, इक प्रकार का मंत्र।
सर्व कामना पूरन
प्रति, मनहु यन्त्र अरु तन्त्र॥
काली चालीसा पढ़, लाली चहै जु कोई।
काली अरि का नाश हो, खाली वचन न होई॥
काली हरि का तेज हैं, अरि को नाशन हार।
हरि की पूरन शक्ति
हैं, करत हेतु संहार॥
सोरठ
जेहि सुमिरत सब आस, लहत पूरन जग नारिनर।
गावत सुन्दरदास, पावत अति शुभ सहज फल॥
भरहु शान्ति सुख धन जन धामा।
अति आनन्द होई यह
ग्रामा ॥३९॥
पुनि पुनि विनवहि
सुन्दरदासा।
मैया पूर करहु
अभिलाषा॥४०॥
दोहा
महाकालिका चरित यह, इक प्रकार का मंत्र।
सर्व कामना पूरन
प्रति, मनहु यन्त्र अरु तन्त्र॥
काली चालीसा पढ़, लाली चहै जु कोई।
काली अरि का नाश हो, खाली वचन न होई॥
काली हरि का तेज हैं, अरि को नाशन हार।
हरि की पूरन शक्ति
हैं, करत हेतु संहार॥
सोरठ
जेहि सुमिरत सब आस, लहत पूरन जग नारिनर।
गावत सुन्दरदास, पावत अति शुभ सहज फल॥
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